Thursday, November 12, 2009

यह ब्लॉग क्यों?


यह ब्लॉग क्यों
इस दौर में ब्लॉग का इतना प्रचलन हो चुका है कि कुछ पूछिए नहीं। ठीक-ठीक संख्या का हिसाब लगाना मुश्किल है। प्रश्न उठता है कि जब इतने ब्लॉग लिखे जा रहे हैं तब यह नया ब्लॉग क्यों? इस तरह का ख़्याल और सोच ही क्यों? कहा जाता है कि हजारों फूलों को खिलने का मौका मिलना चाहिए। जनतांत्रिक प्रणाली का तक़ाजा यह है कि जितने तरह के विचार प्रस्तुत हो रहे हैं, उन्हें अवसर मिलना चाहिए। हमारे सोचने-सम-हजयने और व्यवहार करने के अनेक कोण हो सकते हैं। विचार के रूप अलग-अलग हो सकते हैं। लेकिन इधर एक नए तरह का संकट पैदा हो गया है कि जैसा हम कह रहे हैं, सोच रहे हैं, उसी तरह से सब उसका अक्षरशः पालन करें नहीं तो उन्हें देख लिया जाएगा। महाराष्ट्र विधानसभा में शपथ लेने के प्रसंग में जो हुआ उसे दुर्भाग्य का मामला बस कह देने भर से काम नहीं चलेगा। यह एक तरह की तानाशाही और गुंडागर्दी है। प्रश्न यह है कि क्या आपके विचारों में सुरखाब के पर लगे हैं? क्या आप भर मनुष्य हैं? बाकी सब कीड़े-मकोड़े हैं? यह कोई नई विचार पद्धति नहीं है हालांकि इस तरह के सोच-विचार की प्रणाली पहले से ही रही है। यह अब उसका नया पैंतरा है। नए तरह की दहशतगर्दी है। यह मकाम हमारे दिलों में, हमारी जनतांत्रिक मूल्य प्रणाली में छेदकर रहा है। मेरे साथी शिव कुमार अर्चन ने सच ही कहा था-
सच को गाली और - झूठ  की पूजा
ये जमाना भी क्या जमाना है।
जो हक़ीक़त बयान करता है
लोग कहते हैं वो दीवाना है।
समय के सवाल जटिल हैं। सत्य चिंचड़ी ची बोल रहा है, सच से बचने की कोशिश की जा रही है यही नहीं झूठ को सच में बदलने के खेल जारी हैं और सच को दफनाने की तैयारी है। आप जहाँ जायेंगे वहाँ सवालों से घिरा अपने आपको पाएंगे। लोगों के बर्दाश्त करने की क्षमता लगभग खत्म हो रही है। हमारी ज़िंदगी से हँसने के क्षण खत्म होते जा रहे हैं। घर, दफ़्तर, बाज़ार सब जगह एक तरह का तनाव पसरा हुआ है। सहजता से हँसने के अवसर धीरे-धीरे कम हो रहे हैं। हँसी धीरे-धीरे ग़ायब हो रही है। लिहाजा हँसी के बनावटी क्लब बन गये हैं, लाफ़्टर चैलेन्ज ब-सजय़ गये हैं, कॉमेडी सर्कस जैसे कार्यक्रमों की योजनायें चल पड़ी हैं। हम लोगों के देखते-देखते कपिल शर्मा, राजू श्रीवास्तव, भारती और अन्य हँसने-हँसाने वाले लोगों ने आर्थिक सुरक्षा के अनगिनत रूप धर लिये हैं। पूरे के पूरे सीरियल जमा रखे हैं। इन्होंने हँसी की कमाई को इतना ब-सजय़ा लिया है कि इनकम टैक्स विभाग इन पर छापामारी कर रहा है। ये भी बड़ों-बड़ों को धमकाने में लगे हैं। यह विकास का नया रूपक है या मानक, कुछ कहा नहीं जा सकता। हँसाना यूँ तो सबसे कठिन काम है। लोग स्वयं रोते हैं और दूसरों को निरन्तर हँसाते हैं। चार्ली चैपलिन इसके उदाहरण के रूप में जाने जाते हैं। राज कपूर की फ़िल्म मेरा नाम जोकरहमारे जीवन के व्यापक परिप्रेक्ष्य को उद्घाटित करती है। जोकर गमगीन रहते हुये बेहद कारुणिक क्षणों में भी चुस्त-दुरुस्त रहते हुये भी दूसरों को हँसाता है हालाँकि उसके जीवन में तमाम ऐसे क्षण आये हैं जिसमें उसे ठगा गया है।
सच्चाई और झूठ के सिलसिले में मु-हजये एक कहानी याद आती है, जब धर्म की सत्ता में काबिज पोेप ने अपने पादरी मार्टिन लूथर के पास प्रस्ताव भेजा कि लो स्वर्ग जाने के टिकट बेंचो। मार्टिन यह प्रस्ताव सुनकर चकराया- यह भी कोई बात है- कहीं ऐसा भी होता है? मार्टिन लूथर ने जवाब दिया- यह ग़लत है और इस तरह का काम तत्काल बंद होना चाहिए। पोप ने उसे संदेशा भेजा- तुम्हरी खाल खींच ली जायेगी। तुम्हें आग में जिंदा जला दिया जाएगा जो आइन्दा ऐसी बातें करोगे। मार्टिन लूथर ने उसे पत्र लिख कर बताया कि मैंने समूचे स्वर्ग के टिकट जला दिए हैं। मु-हजये जो करना था मैंने कर दिया है अब तुम्हारी बारी है। तुम्हें जो करना है कर लो। तुम ईश्वर के प्रतिनिधि नहीं शैतान के प्रतिनिधि ज़रूर हो क्योंकि तुम सच्चाई की बात करने वाले को जलाने की धमकी दे रहे हो। मैं सही हूँ और तुम गलत हो। इतिहास में दर्ज़ है कि रोम के लोग मार्टिन लूथर के साथ हो गए और पोप की सत्ता में भूचाल आ गया। पोप के कारनामे का यही हश्र होना था। आगे भी जो सच को -हजयुठलाने की कोशिश करेगा उसका हाल पोप जैसे ही होगा।
हमारे आस-पास जो भी घट रहा है उससे रोंगटे खड़े हो रहे हैं। अन्याय, अत्याचार, आतंक और अमानवीयता निरन्तर ब-सजय़ रही है सच्चाई के रास्ते पर अनेक मुश्किलें हैं हमारी आज़ादी और जनतंत्र लफड़े में फंस गये हैं मु-हजये यही दिख रहा है कि मारो, काटो, खाओ और हांथ न आओ। कार्य की संस्कृति के स्थान पर झूठ, मक्कारी और मारो काटो, हाथ न आओ का कारोबार जारी है। जो सही हैं वे दिक्कत में हैं। वे परेशानियों में फंसे हैं, उन्हें निरन्तर धमकियाँ मिल रही हैं। उनका कत्ल हो रहा है, वे सरे बाज़ार पिट रहे हैं और इन वस्तुस्थितियों का कोई ओर-छोर नहीं। सच है कि इन वास्तविकताओं को हम इस रूप में देख सकते हैं-
मेहनत के हाथों पर छाला
कल भी था और आज भी है।
उनके मुंह से दूर निवाला
कल भी था और आज भी है।
झूठ के सिक्के बाजारों में
झूठ के सर पर ताज यहाँ
सच्चाई के मुंह पर ताला
कल भी था और आज भी है।
इस ब्लॉग में सच्चाई के लिए, न्याय के लिए संघर्ष जारी रहेगा। अन्याय, अत्याचार और ग़लत स्थितियों के ख़िलाफ़ होकर इनका प्रतिरोध लिया जायेगा। मनुष्यता की राह में  जो भी आड़े आयेगा उससे संघर्ष करना पड़ेगा क्योंकि संघर्ष के लिये जो मूल्य हमारे समय और समाज ने विकसित किये हैं उनका पालन करना ही मनुष्यता की सेवा करना है। ज़िन्दगी कभी भी बैठे-ठाले की नहीं होती वह आग में तपती है, संघर्षों में बलवती होती है और तूफ़ानों के बीच पलती है ज़िन्दगी का रास्ता कभी भी आसानी का रास्ता नहीं था वहाँ लोहा लेना लोहे के चने चबाना और तूफ़ानों के बीच अपने आप को सुरक्षित रखना यही हमेशा धरोहर के रूप में रहा है। राजनीति में सामाजिक नीतियों में, और धार्मिक सन्दर्भों में जो झूठ फैलाया जा रहा है, जो प्रतिज्ञायें की जा रहीं हैं सम्भवतः उससे हमारे विकास के रास्ते को किसी भी प्रकार के लाभ की सम्भावना नहीं है। झूठ और मक्कारी निरन्तर फैलती जा रही है। छलावा, दिखावा और  प्रदर्शन निरन्तर हमारी हैसियत को समाप्त करने पर तुले हैं आज के वातावरण में अहो-अहो की संस्कृति ने हमें संघर्ष के सामने लाचार कर दिया है। निरन्तर डर रहे हैं कोई भी कठिन फैसला लेना क्या हमारे लिये कठिन है जो ग़लतियों के ख़िलाफ़ फैसला नहीं लेगा वह विकास के रास्तों तक कैसे जायेगा। दुष्यन्त ने कभी कहा था अब तो पथ यही हैयह पथ निश्चित रूप से मुश्किलों का पथ है, संघर्ष का पथ है और बहुत लम्बी दूर तक जाने का संघर्ष है। ये जो बातें आप से कही जा रहीं हैं, यह प्रतिज्ञा या शपथ उस तरह की नहीं है जो आम तौर पर ली जाती है लेकिन उस पर प्रायः अमल नहीं होता। आज का प्रसंग यहीं तक।


2 comments:

  1. blog ki duniya hinsak aur kroor hai.par naye yug ki nayee jantantrikta ka vahak hai.swagat hai.

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  2. आपको इस रूप में देखकर बहुत अच्छा लगा. आपका ज़ोरों से स्वागत है ब्लॉग-जगत में!

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